कला वह है जो सत्य के अनुरूप हो और उठानेवाली हो हमारी पीढ़ियों को यों तो हर लापरवाह साधन बना सकता है गिरने का सीढ़ियों को !
हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ